Priyanka06

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लेखनी प्रतियोगिता -18-Jun-2023 पिता मेरे आराध्य

शीर्षक-पिता मेरे आराध्य
पिता मेरे विधाता है, वही आराध्य कहलाते।
उन्हीं से जग सदा सजता, उन्हीं से बाग महकाते।।
कभी हम को हंसाते हैं, कभी हमको रुलाते हैं।
हमारे लक्ष्य को बुनते, स्वयं श्रमकण बहाते हैं।।

कभी गिरि तो कभी बरगद, अनगत सोचता रहता।
बने उज्ज्वल  सतत जीवन, स्वयं वह पीर सब सहता।।
कनक जैसा चमकता है, सिफर जैसा हृदय होता।
अरुण बनकर सदा तपता, कभी भी वो नहीं रोता।।

लेखिका
प्रियंका भूतड़ा प्रिया ✍️

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5 Comments

सुन्दर सृजन

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बहुत ही सुन्दर

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Abhinav ji

19-Jun-2023 07:42 AM

Very nice 👍

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